दास्तान-गो : ‘राग दरबारी’ तानसेन का सुनें या श्रीलाल शुक्ल का पढ़ें, आनंद बराबर मिलेगा

Daastaan-Go ; Rag Darbari's Writer Shreelal Shukla Death Anniversary : आलम यूं हुआ कि ‘राग दरबारी’ कहें तो लोगों को ‘संगीत वाले’ की जगह बजाय ‘शब्दों वाला’ याद आता है. और पंडित तानसेन की जगह पंडित श्रीलाल शुक्ल की तस्वीर ज़ेहन में उतरने लगती है. क़स्बा शिवपालगंज दिखने लगता है. रंगनाथ, रुप्पन बाबू, सनीचर, वैद्यजी समेत सभी गंजहे जहां में दौड़ जाते हैं. जोगनथवा याद आ जाता है और उसकी सर्फरी बोली ‘मर्फले गर्फले सर्फाले गर्फोली चर्फलानेवाले’ भी. ख़्याल आते ही पेट में गुदगुदी होने लगती है. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों का वह ‘विकास’ भी दिख जाता है, जो वहां तक पहुंचता नहीं.

from Latest News देश News18 हिंदी https://ift.tt/9K7nfLC

Post a Comment

0 Comments